बंगला साहित्यकारों की गतिविधियां लगभग ठप सी हैं। साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र रहा आदमपुर, भागलपुर बंग साहित्य परिषद का भवन खामोश सा है। यहां शरतचंद्र, बनफूल जैसे साहित्यकार जुटते थे।
मनीषा
भागलपुर का बंगला नाटक लगभग खामोश हो चुका है। करीब एक शताब्दी तक यहां बंगला नाटक की धूम रही, लेकिन आज ऐसी कोई पहचान देखने को नहीं मिलती। भागलपुर में बंगला नाटक का जन्म 1880 में राजनारायण बनर्जी, शिवचन्द्र खां, वैद्यनाथ चक्रवर्ती तथा चन्द्रनाथ बनर्जी के सहयोग से हुआ। इनलोगों के गुजर जाने के बाद निमाई नियोगी, तीनकौड़ी घोष, चन्द्र घोष तथा अन्य लोग बंगला नाटक की जीवंतता को बनाए रखने में लगे रहे। उस समय भागलपुर में जात्रा और बंगला नाटकों की धूम रहा करती थी। बाद के दिनों में ‘भागलपुर आर्य थियेटर’ की स्थापना की गयी। इस थियेटर को पाकुड़ के तत्कालीन राजा तारेश पांडेय ने उपहार स्वरुप एक मंच भी प्रदान किया था। मंच रायबहादुर तेजनारायण सिंह के घर पर अवस्थित था। 1886 में यह मंच एक अग्निकांड में जलकर समाप्त हो गया। इसके बाद ‘हुल्लड़े’ नाम से एक दल तैयार किया गया। इस दल में सुर- संगीत देने का काम सुरेन्द्रनाथ मजुमदार करते थे। सुरेन्द्रनाथ उस वक्त आयकर विभाग में कार्यरत थे।
आदमपुर थियेटर क्लब से अभिनेता अशोक कुमार और किशोर कुमार को मिली थी अभिनय की प्रेरणा
1896 में प्राण कुमार दास और बरारी के उग्रमोहन ठाकुर ने संयुक्त रुप से ‘बंगाली टोला थियेटर’ की स्थापना की। यही दोनों इस थियेटर के अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष बने। उसी वक्त राजा शिवचन्द्र बनर्जी के सुपुत्र सतीश चन्द्र बनर्जी ने ‘आदमपुर थियेटर क्लब’ बनाया। इसी क्लब से फिल्मी जगत के दो सितारे अशोक कुमार और किशोर कुमार को अभिनय की प्रेरणा मिली। इसी आसपास अमरनाथ घोष तथा योगी सिंह ने मिलकर ‘चम्पानगर थियेटर’ की स्थापना की। इसी थियेटर में कृष्ण आचार्य गीत रचते थे और उसे गाते भी थे। सुरीली आवाज की वजह से उन्हें काफी नाम और सम्मान भी मिला था। इसके बाद बंकिमचन्द्र रचित ‘आनंदमठ’ नामक नाटक से ‘संगीत समाज’ की स्थापना हुई। आनंदमठ में अभिनय करने की वजह से पुलिस इंस्पेक्टर चारूचन्द्र चट्टोपाध्याय को अपनी नौकरी से हाथ धोनी पड़ी थी। 1909 में लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों ने ‘लोक निर्माण विभाग थियेटर क्लब’ की स्थापना की। कुछ दिनों बाद ही इस क्लब को ललित मोहन राय के निर्देशन में चल रहे ‘संगीत समाज’ के अधीन सौंप दिया गया। ‘संगीत समाज’ का अपना भवन पटल बाबू रोड पर था। इसी वक्त फिल्मी परिचालक अरद्वेन्दुनाथ मुखर्जी (कालाचांद), रमापति घोष, निरोध मित्र तथा अन्य लोगों ने एक नया ‘मिलनी क्लब’ बनाया। इस क्लब ने ‘मानमयी गर्ल्स स्कूल’ नामक पहला नाटक खेला। निहारिका की भूमिका में सूर्य बनर्जी तथा मानसेर की भूमिका में अरद्वेन्दु नाथ मुखर्जी के अभिनय की खूब प्रशंसा हुई।
उस वक्त पुरुषों को ही करनी पड़ती थी महिलाओं की भूमिका, उसमें भी खूब प्रशंसा बटोरी
उस वक्त महिलाओं की भूमिका भी मर्दों को ही करनी पड़ती थी। अतिन मुखर्जी, निरोध मित्र, रंजन मित्र, तथा कानु बोस ने महिलाओं की भूमिका कर खूब प्रशंसा बटोरी। पचास के दशक में महिलाएं भी आगे आयीं। महिला की भूमिका वह निभाने लगीं। सुप्रिया बसु बंगला नाटक की पहली महिला अभिनेत्री बनीं। कुछ समय बाद स्वर्णकमल राय तथा अन्य की मदद से ‘भागलपुर आर्ट प्लेयर्स एसोसिएशन’ की स्थापना हुई। इसके अध्यक्ष स्वयं स्वर्णकमल राय बने। स्वर्णकमल गीत रचना करने के साथ- साथ उसे सुर देने का काम भी करते थे। वे हर तरह के ‘साज’ को बजाना जानते थे। इसी समय मेदनीपुर क्रांतिकारी दल के सदस्य सत्येन्द्र नाथ बसु जिनको बांग्लादेश से निकाल दिया गया था, का आगमन भागलपुर हुआ। वे यहीं रह गये और अभिनय की दुनिया से जुड़ गये। इस समय तक ‘संगीत समाज’ में संगीत के अलावा अभिनय पर भी जोर दिया जाने, लगा था। ‘संगीत समाज’ के दो अभिनेता सत्यव्रत सन्याल (न्यायाधीश, पटना उच्च न्यायालय) तथा सुभाष चन्द्र घोष उर्फ चन्द्रगुप्त मौर्य काफी चर्चित अभिनेता थे। श्री मौर्य बंगला साहित्य के नामी साहित्यकार रहे हैं और उन्हें ‘युगान्तर’ पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है। कुछ वर्षों बाद बंगाली टोला में ‘अपेरा क्लब’ की स्थापना महादेव चन्द्र बंधोपाध्याय ने की। बाद में आपसी विवाद की वजह ‘शक्ति अपेरा क्लब’ के रूप में एक और संस्था बनी। इसके भी प्रतिष्ठापक महादेव चन्द्र बन्धोपाध्याय ही थे। हां, अभिनय जगत में दोनों क्लब अलग- अलग दलों के रूप में सामने आते थे। इसके बाद सचिन सर्वाधिकारी, सुभाष चन्द्र घोष (चन्द्रगुप्त मौर्य), डा. समीर कुमार घोष, गौरीशंकर चौधरी आदि ने मिलकर ‘मरीचिका क्लब’ का गठन किया। तुरंत बाद ‘यूनाइटेड आर्टिस्ट ऑफ भागलपुर’ की स्थापना हुई। दुर्गा पूजा के अवसर पर मिट्टी का घर’ नाटक के माध्यम से इस क्लब ने अपनी पहचान बनायी। क्लब के प्रतिष्ठापक सदस्यों में प्रचलित फिल्मी परिचालक तथा फिल्म अभिनेता दिलीप मुखर्जी, समीर कुमार बनर्जी, डा. सचिदुलाल बनर्जी प्रमुख थे। 1967 में सतीचरण राय, तपन विश्वास, सोमन चटर्जी आदि ने मिलकर ‘खेमा कल्चरल ग्रुप’ बनाया। संगीत, परिचर्चा को लेकर चलना इस ग्रुप का उद्देश्य था। 13 मार्च 1971 को इस ग्रुप ने अपना पहला सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया। 1983 में यह बंद हो गया। 1971 में ही एक और क्लब की स्थापना हुई। इसका नाम ‘यांत्रिक’ रखा गया। इसके प्रतिष्ठापक सदस्यों में तापस सिन्हा, गरमा घोष, भानू मलिक ‘मंटू दा’, दिलीप मुखर्जी, देवप्रिय घोष, प्रणव कुमार घोष प्रमुख थे। इससे पहले फिल्म अभिनेता दिलीप मुखर्जी, उनकी बहन तथा अन्य लोगों ने मिलकर ‘रूपश्री’ नामक क्लब की स्थापना की। दिलीप मुखर्जी के फिल्म जगत में प्रवेश के बाद इसे बंद कर दिया गया। 1977 में ‘ट्रीपल ए’ अर्थात ‘अमेच्योर आर्टिस्ट एसोसिएशन’ की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य प्रत्येक वर्ष नाटक प्रतियोगिता का आयोजन करना था। इस एसोसिएशन ने ‘बेकार विद्यालंकार’, ‘चल युद्धे’ आदि नाटकों का आयोजन कर खुद को लोगों के सामने रखा। 1988 में सदस्यों के यत्र-तत्र हो जाने की वजह से यह भी बंद हो गया। 1976 में कल्याण घोष, दीपांकर मजुमदार, उदय मजुमदार, विवेक मित्र, तन्मय मित्र आदि के सहयोग से ‘शरत स्मृति संघ’ की स्थापना हुई। इस संघ का उद्देश्य सांस्कृतिक उत्थान, अभिनय के साथ-साथ कथा शिल्पी शरतचन्द्र की प्रतिमा की स्थापना करना था, लेकिन पुराने सदस्यों की व्यस्तता और समय नहीं दे पाने के कारण यह भी बंद हो गया। संघ ने सांस्कृतिक क्षेत्र के अलावा ‘फरार’ तथा ‘बीए पास बहू’ नामक नाटक की प्रस्तुति कर अच्छी पहचान बनायी थी। 1988 में ‘मांगलिक क्लब’ बना। क्लब ने कोलकाता में आयोजित ‘निखिल भारत नाटक’ प्रतियोगिता में लगातार दो वर्षों तक शिरकत किया और पुरस्कार भी लिये। बंगला साहित्यकारों की गतिविधियां भी लगभग ठप सी हैं। साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र रहा आदमपुर, भागलपुर बंग साहित्य परिषद का भवन खामोश सा है। यहां शरतचंद्र, बनफूल जैसे साहित्यकार जुटते थे।